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Achal Mera Koi by Vrindavan Lal Verma

Achal Mera Koi by Vrindavan Lal Verma
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Achal Mera Koi by Vrindavan Lal Verma

‘तो बतलाओ, तुम अचल, से कभी प्रेम करती थीं?’ ‘कभी नहीं । और तुम? ’ ‘हाँ करती थी । एक युग-सा हो गया । परंतु सुधाकर को और भी अधिक चाहा ।’ ‘अचल के यहाँ या कहीं अकेली जाने पर सुधाकर बाबू कोई रोक-टोक तो नहीं करते? ’ निशा ने पूछा । कुंती ने जरा भन्नाकर उत्तर दिया, ‘रोक-टोक कैसे करेंगे? मैं कोई चोरी तो करती नहीं । मान लो मैं अचल को चाहने लगूँ तो उनका मार्ग अलग, मेरा अलग; परंतु जब तक वे अपने शरीर को और व अपने शरीर को पवित्र बनाए रहें तब तक किसी के मन से किसी को क्या वास्ता? ’ ‘ शायद तुम्हारा कहना ठीक हो; परंतु हिंदू धर्म में तन और मन के बीच में कोई अंतर नहीं रखा गया है ।’ ‘ केवल स्त्री के लिए । पुरुष के लिए सब धन बाईस पंसेरी । स्त्रियों ने शास्त्रों कोलिखा होता तो उनमें कुछ और मिलता । ’ ‘ सो तो ठीक है, कुंती । शायद पुरुषों की अपेक्षा अपना समाज स्त्रियों पर अधिक टिका हुआ है । पुरुष चाहे इस बात को माने और चाहे न माने, पर इन्हीं स्त्रियों को बहुत-से अपना शृंगार समझते हैं और अनेकों पैर की जूती । मुझको दोनों कल्पनाओं से घोर घृणा है ’ नारी स्वतंत्र होनी ही चाहिए । पर स्वतंत्रता और उच्छंखलता के भेद को भी समझा जाना चाहिए । आयातित आचरण से नारी-पुरुष समान हुए या नहीं-यह आज के लोग अच्छी तरह परिचित हैं । परंतु इस भविष्यत् को वर्माजी की दृष्टि ने पहले ही परख लिया था । वर्माजी की श्रेष्ठ कृतियों में से एक है ‘अचल मेरा कोई ’

Books Information
Author Name Vrindavan Lal Verma
Condition of Book Used

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Ex Tax: Rs.107.00
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  • Model: SGCf06
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