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Krishnadwadashi by Mahashweta Devi

Krishnadwadashi by Mahashweta Devi
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Krishnadwadashi by Mahashweta Devi

शीर्षक समेत कथा-संकलन में महाश्वेता देवी की तीन कहानियाँ संगृहीत हैं। सभी कहानियों का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। अथक परिश्रम और शोध के मंथन-निष्कर्षों के बाद यह कहानियाँ वजूद में आई हैं। बंगाल का अतीत और उसकी विडंबनाएँ, विसंगतियाँ लेखिका के प्रिय विषय रहे हैं। मूलतः आप लोककथाओं तथा किंवदंतियों की वैज्ञानिक सत्यता की भी पड़ताल करती हैं। संग्रह में शामिल सभी कहानियों के माध्यम से इतिहास की रौशनी में मौजूदा समय की नब्जश् को टटोलने की कोशिश की गई है। ‘कृष्णद्वादशी’ तथा ‘केवल किंवदंती’ कहानियों के कथानक ‘बंगाली जाति का इतिहास’ तथा ‘बृहत् बंग’ ग्रंथ से लिए गए हैं। नीहार रंजन, दिनेशचंद्र और सुकुमार सेन जैसे इतिहासविदों ने वणिक-वधू माधवी का उल्लेख किया है। प्राचीन बंगाल में राजा बल्लाल के समय सुवर्ण-वणिकों के साथ क्रूर बर्ताव किया गया था। राजा वर्ग और वर्ण के आधार पर अपनी नीतियों का पालन करता था। महिलाओं की स्थिति सर्वाधिक त्रासद थी। ‘कृष्णद्वादशी’ की माधवी में द्रौपदी की झलक देखने को मिलती है। ‘केवल किंवदंती’ की वल्लभा अनन्या है ही। ‘यौवन’ कहानी के केंद्र में ईस्ट इंडिचा कंपनी का विद्रूप चेहरा है। तब बंगाल से भारत लाए जाने वाले सैनिक बीच में विद्रोह कर देते तो उन्हें जेल में ठूँस दिया जाता था। कई सैनिक इस अमानुषिक माहौल से तंग आकर भाग जाया करते, ऐसे सैनिकों को ‘भागी गोरा’ कहा जाता था। महाश्वेताजी ने इस ऐतिहासिक समय को लगभग 30-32 वर्ष पूर्व ‘नृसिंहदुरावतार’ शीर्षक कहानी में विश्लेषित करने की कोशिश की थी। ‘यौवन’ उसी कथा की सार्थक पुनर्विवेचना है। इस कहानी में लुप्त हो रही ‘मनुष्यता’ का अन्वेषण है।

Books Information
Author Name Mahashweta Devi
Condition of Book Used

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  • Model: sga57
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